न तू मुझे बाहर से आकर्षित कर सक्ती है ....
ना तेरा शरीर......
ना हि तेरे लहरते बालो का साया..........
ना हि तेरी हलकीसी मुस्कुराहट
ना हि तेरी लचकती चाल..........
ना हि तेरे गोरे गाल
ना तेरा रंग .....
ना तेरा रूप.....
ना तेरी बदन कि गर्मी .....
ना तेरी प्यार भरी बाते
ना हि तेरा गुस्सा ....
ना तेरा अन्जानापण.....
मैं तेरे दिखणे पे कभी नही गया...ना हि तेरे सुंदरता पे......
तेरे रूप का
तेरे रंग का
तेरे तन का
तेरे मन का
तेरे बदन का
तेरे लहरते बालो का
तेरी हलकीसी मुस्कान का
तेरे हर एक बातो का
तो
मैं
दिवाना नही ......
(वो और होंगे ...जिसका मुजे गम नही )
.मुजें पता चला है....मैं तुमसे प्यार क्यो करता हुं....
क्यो कि
एक तुम हि हो ....जो मुझे समज लेती हो
मेरे जजबातो को परख लेती हो
एक तुम हि हो ...जो मुजें समज लेती हो
मेरे आंखो को.... पढ लेती हो
वो तुम हि हो ..जो मेरे रग रग से वाकीफ हो
शायद
इसीलिये
मैं तुमसे बेइन्तेहा ..प्यार करता हुं
ऐसा मुजें लगता है..
येही मेरी धारणा हैं !!!
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