Sunday, January 19, 2014





साबरमती आश्रम में एक युवक आया और उसने गांधीजी को प्रणाम कर कहा , बापूजी , मै देश सेवा करना चाहता हूँ आप मेरे लायक कोई सेवा बताइए | मैंने काफी पढाई की है | अच्छी तरह अंग्रेजी जनता हूँ | मेरे रहन - सहन का स्टार भी बहुत ऊँचा है |

युवक को लगा के उसके ऐसा बताने से गांधीजी प्रभावित होंगे | गांधीजी युवक की बात सुनकर बोले , फ़िलहाल तो आश्रम के लोगों के भोजन के लिए गेहूं बीनने है , क्या आप इस काम  में मदद करेंगे ?

यह सुनकर युवक को थोड़ी निराशा हुई | उसे उम्मीद थी की उसे कोई महत्वपूर्ण काम मिलेगा |
 उसने बेमन से गेंहू बीनने शुरू कर दिए | 
वह जल्दी ही थक गया | थकावट से चूर युवक बोला , बापू अब आज्ञा दीजिये | दरअसल मै शाम का खाना जल्दी ही खा लेता हूँ | 
इस पर गांधीजी बोले , कोई बात नाही आज आप यही पर खाइए | आश्रम का भोजन तैयार होने ही वाला है |

युवक ने अश्रम का सदा भोजन बड़ी मुश्किल से अपने गले से उतरा |फिर औरों की तरह उसे अपने बर्तन भी स्वयं ही साफ करने पड़े |

जब वह जाने लगा तो गांधीजी उसके कंधे पर हाथ रखकर बोले , नौजवान , तुम्हारे अन्दर देश प्रेम की भावना होना अच्छी बात है , मगर इसके लिए मन भी निर्मल और स्वच्छ होना चाहिए | देश सेवा करने वाले व्यक्ति के मन में स्वयं को ऊँचा समजने के बजाय सबको एकसमान समजने की भावना होनी चाहिए | जो इन्सान मनुष्य के बिच फर्क नहीं करता |, वही सभी बन्धनों से ऊपर उठकर राष्ट्र की सेवा कर सकता है | 


युवक गाधी जी का अभिप्राय समजकर शर्मिंदा हो गया | उसने गांधीजी से माफ़ी माँगते हुए कहा ,

 आज से मै सच्चे मन से देश व व्यक्ति की सेवा करूँगा | गांधीजी ने उस युवक को गले लगाया |.......( सेवा -- संदीपन ह्या मासिकातून साभार )

गोष्ट संपली .....


moral of the stori सुरु..........ही गोष्ट खास आपल्या वडार समाज बांधवा साठी ...

जे समाज संघटने मध्ये काम करतात , करू इच्छितात ...जे करतात , त्यांच्यावर टीका टिपणी करतात , ज्यांना समाजासाठी काहीतरी करून दाखवायची उर्मी आहे अशाच्यांसाठी 
...जे स्टेज वर ऐन वेळी जागा अडवतात व खर्या कार्यकर्त्याला अडगळीत टाकून देतात ....

असले आयत्या बिळातले " नागोबा " आपल्या कडे खूप आहेत ....ती वृत्ती सुद्धा वाढत चाललेली आहे 

...कधीतरी खर्या कार्यकर्त्याला मोठेपण द्यायला शिका देवहो ....

कार्यकर्त्याचा " उपयोग किंवा वापरून घेण्याची " वृत्ती हि बरी नाहीं ...
आपला समाज ग्रामीण भागात व शहरात झोपडपट्टी असलेल्या भागात खूप वाईट अवस्थेतून जात आहे ...तिथे खरे कार्य करण्याची गरज आहे ..तेथील कार्यकर्त्यांना " सामर्थ्य / बळ " देण्याची गरज आहे ...

आपल्या वडार समाज बांधवा मध्ये नीतिमान , चारित्र्यवान कार्यकर्ते निर्माण व्हावेत ह्या साठी हा अल्पसा प्रयत्न ...

शेवटी एक म्हण सांगतो " जसा राजा , तशी प्रजा " ....जसा समाजाचा नेता , तसा समाज ...
नेता जर चारित्र्यवान , कर्तव्य दक्ष्य , कार्यकर्त्या प्रती संवेदन शील , समाजासाठी आदरणीय , वक्तशीर , व सर्वात महत्वाचे म्हणजे सर्व गोष्टी ठरवून करणारा असला तर ....???????

.....तर काय हो ?????...कार्यकर्त्यांना हि हुरूप येतो ना !!!...

जय बजरंग ....जय वडार .....

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