3 : 16.........17 /5 /2011 ....thuesday
देखूं जंहा ,...पाऊ वंहा
मन - मंदिर में छिपे हो कंहा ?
बुध्दी के दाता,....ध्यान के ध्याता
सत् चित्त स्वरुप ,..चिद घन आनंद
उत्पति के कारन ,....जगत प्रति पालक ,...अंत में तू ही संहारक
आदि बीज ॐ तू ही ....
संचित , प्रारब्ध , और क्रियामन का " करता " तू ही
भुत , भविष्य और वर्तमान का " समय " तू ही
सत्वगुण , रजोगुण , और तमोगुणों का " गुण " तू ही
स्थूलदेह , सूक्ष्मदेह और कारन देहों का " देह " तू ही
जागृती , सपना और सुषुम्ना की " अवस्था " में भी तू ही
परा , पश्यन्ति , मध्यमा और वैखरी " वाणी " में भी तू ही
( इन सब में रहकर भी ...इन में भी तू कही नही )
. ......देखू जंहा ...पाऊ वंहा
आकाश , वायु , अग्नी , जल और पृथ्वी के "तत्व " तू ही
तिन गुणों के स्वामी और दस इन्द्रियों के " ज्ञानी " तू ही
सत्य तू ही , तू ही आनंद .....चैतन्य तू ही , तू ही ब्रह्मानंद
मूलाधार स्थित तेरी समाधी
....जान ना पाये पंडित , मौला और पाखंडी
दास " अमर " निश दिन तुझे जपे ......लिए तुलसी की माला
पत्थर पूजे , आदमी पूजे , गिरी चढ़ा , गंगा ( में खुद को ) धोया
फिर भी तू रहा हमेशा खोया खोया ...
गुरुचरण जब लीन हुआ
आत्मा को आत्मा का ग्यान हुआ
आत्मा को आत्मा का ग्यान हुआ
३ : ५६ .......१७ /५/ २०११......मंगलवार
No comments:
Post a Comment