मैंने तेरी सुन्दरता की बात छेडी है ,
तो ये मेरे मन की सुन्दरता है
देख मुझे ...ये
बबुल का पेड़ भी ..अति सुन्दर लग रहा है
मै उसके ..पीले - पीले फुल से मोहित हूँ
मुझे उसके काँटों से प्यार है
मुझे उसके नाजुक पत्ते ,लुभाते है
मै उसके फल से ,खिलवाड़ करते रहता हूँ
मै ऐसा कम-नशीब हूँ
जो मुझे आम के पेड़ की छांव नशीब नही
इक ये ही जगह ऐसी है
जंहा मै चैन की नींद सोता हूँ
अपने ही यादों में खोता हूँ
यंहा कोई आता - जाता नही
यंहा मुझे किसीसे कुछ लेन - देनं नही है
यंहा से मुझे ...हर एक चीज सुन्दर दिखती है
हर वो नजारा मेरी आगोश में रहता है
अलग - अलग लोंगों के ......
अलग - अलग बर्ताव भी अच्छा लगता है
धुप भी अछि लगाती है
पत्थर भी " हसीन " दिखते है
ये सुन्दरता मेरे मन की है
और
मन में बसे " आत्मा " की है
और
आत्मा जानता है के वो " अमर " है
.........
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